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और उनके सिद्धान्त ।
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पुष्टिमार्ग का तत्त्व है 'भगवदनुग्रह' । किन्तु यह अनु
. ग्रह क्या है ? कोई जीवित पदार्थ है या 'पुष्टिमाग का तत्त्व , मूर्तिधारी मनुष्य है या जड जंगम ? नहीं,
अनुग्रह यह सब कुछ नहीं है। श्री महाप्रभु ने, अनुग्रह को, देखिये, अपने निवन्ध में किस प्रकार समझाया है । आप आज्ञा करते हैं_ 'अनुग्रहो लोकसिद्धो गूढभावान्निरूपितः' __ अर्थात् अनुग्रह कोई जीवित पदार्थ नहीं है और न कोई मूर्तिधारी मनुष्य या जड जंगम ही है जिसे लोग प्रत्यक्ष में देख या दिखा सकें । उसे जानने की रीति यह है कि जब लोक में अनुग्रह का उत्तम फल दीखे तब अनुमान किया जाता है कि 'अमुक पर अनुग्रह हुआ । इस अनुग्रह का स्वरूप महाप्रभुजी ने निवन्ध में 'कृष्णानुग्रह रूपा हि पुष्टिः कालादिवाधिका' इस प्रकार कहा है। अर्थात्-पुष्टि नाम से कहा गया जो पदार्थ वह काल, कर्म स्वभाव आदि सब का जय करने वाला है अथवा जिसकी सत्ता केवल निस्साधन किसी अधिकारी को उत्तम फल होने से ही अनुमित की जाय ऐसा परम विलक्षण लौकिक और अलौकिक दोनों फलों को देने वाला भगवद्धर्म है। यह अनुग्रह यहां उदाहरण देने से विशेष स्पष्ट होगा।
इस बात को वहुत दिन हो गये । कान्यकुञ्ज में एक