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और उनके सिद्धान्त । १५१ जिस प्रकार जाज्वल्यमान् अग्नि अपने किरण और मण्डल के सहित अस्तित्व में रहती है अथवा जिस प्रकार सूर्य अपने किरण और मण्डल सहित आविर्भाव ग्रहण करते हैं उसी प्रकार भगवान् श्रीकृष्ण भी अपने चार व्यूहों के सहित यहां प्रकट होते हैं । जिस प्रकार सूर्य और अग्निसे उन २ के किरण और मण्डल प्रथक् नहीं है उसी प्रकार भगवान् के ये चार व्यूह भी भगवान् से प्रथा नहीं हैं।
जिस प्रकार सूर्य के किरण सूर्य के ही रूपान्तर हैं, उसी प्रकार भगवान् श्रीकृष्ण का रूपान्तर ही वासुदेव व्यूह है । इस लिये जिस प्रकार भगवान् श्रीकृष्ण मुक्तिरुप
और सर्वोद्धार समर्थ हैं उसी प्रकार वासुदेव व्यूह भी यह कार्य करने में क्षम्य है।
जिस प्रकार सूर्य किरणों के आसपास मण्डल होता है उसी प्रकार संकर्षण व्यूह है। संकर्षण में वासुदेव का संक. पण रूप से भगवान् का आवेष है । इसी लियें व्रज युवतियोंके साथ आपने भी एक समय लीला की थी । सर्व कर्षक होने से संकर्षण कुछ फलात्मक भी हैं। इनका कार्य असुरोंके संहार करने का है। __उस मण्डल का ही अंशुरूप प्रद्युम्न व्यूह है । इनका कार्य वंशस्यापन है । अंशु के मण्डल रूप अनिरुद्ध ब्यूह हैं । इनका कार्य धर्मरक्षा है । वस्तुगत्या ये चारों व्यूह भगवान् श्रीकृष्ण ही हैं।