Book Title: Vallabhacharya aur Unke Siddhanta
Author(s): Vajranath Sharma
Publisher: Vajranath Sharma

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Page 392
________________ २७० श्रीमद्वल्लभाचार्य ५-जीव अक्षर ब्रह्म का अंग है फिर भी अविद्या से वह अपने स्वरुप को नहीं जानता । अविद्या से मुक्त होने पर स्वरूपानन्द मिलता है। ६-श्रवणाभक्ति करने से भगवान् का माहात्म्य जाना जा सकता है और भगवान् की सेवा में अभिरुचि बढती है। सेवा के साथ श्रवणादि करने से अविद्या से जीव शीघ्र मुक्त हो जाता है। ७-जीवों के दो भेद हैं, दैवी और आसुरी । दैवी सृष्टि मोक्षकी अधिकारिणी है । इस के दो भेद हैं। पुष्टि और मर्यादा । पुष्टिसष्टि प्रभु के स्वरूप में ही आसक्त रहती है और उनकी प्रवृत्ति प्रभुकी सेवा करने में ही होती है । ___ मर्यादासृष्टि वेदाज्ञा में आसक्त होने से मर्यादा में ही उनकी विशेष आसक्ति रहती है। आसुरी, प्रवाही सृष्टि है। यह सृष्टि लौकिक प्रवाह में ही आसक्त रहती है। पुष्टिमक्ति के भी भेद हैं । उसमें शुद्धपुष्टिभक्ति अन्यन्त श्रेष्ठ गिनी गई है इस भक्ति के अधिकारी जीव, केवल प्रभु की आज्ञा से ही प्रभु की लीलोपयोगी अनुकूलता करने के लिये प्रकट होते हैं । प्रभु की आज्ञानुरुप कार्य करके वे फिर प्रभु के समीप ही चले जाते हैं । मिश्रपुष्टि-अपराध वश प्रभु के द्वारा इस लोक में आते हैं इन के तीन भेद हैं। पुष्टिमिश्र पुष्टि, मर्यादामिश्रपुष्टि और प्रवाह मिश्र पुष्टि भक्त ।

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