Book Title: Vallabhacharya aur Unke Siddhanta
Author(s): Vajranath Sharma
Publisher: Vajranath Sharma

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Page 393
________________ और उनके सिद्धान्त। २७१ पुष्टि मिश्र पुष्टि भक्त भगवान् के सब स्वरूपों को और उन के गुणों को, उन की लीला को और अपने ऊपर हुए दण्ड को, और अब उन को क्या कर्तव्य है यह सब जानने वाले होते हैं। _मर्यादा मिश्रपुष्टिभक्त भगवान् के गुणों को जानने वाले होते हैं। _प्रवाह मिश्रपुष्टिभक्तो में भगवान् में स्नेह कम होता है। लौकिक आसक्तिवश वे प्रभु सेवा संबंधी कार्य स्नेह रहित होकर करते हैं । इन मिश्रपुष्टि भक्तों का क्रम से शुद्ध पुष्टि में प्रवेश हो सकता है। प्रवाही जीवों के दो भेद हैं । सहज आसुर और अज्ञ आसुर । सहज आसुरों का वर्णन गीताजी के सोलहवें अध्याय के सात से वीस श्लोको में किया है। अज्ञ आसुर सच पूछा जाय तो दैवी ही हैं। इन का समावेश प्रवाह मिश्र पुष्टि भक्तों में हो जाता है । वे सहज आसुर में मिल नहीं जाते।वे भक्तिमार्ग का अनुसरण करने वाले होते हैं और दण्ड का भोग कर कम से क्रतार्थ हो जाते हैं। __पुष्टि सृष्टि प्रभु के अंग से ही उत्पन्न हुई है । इस लिये उस की क्रिया, प्रभु स्वरूप की सेवा और आसक्ति भी उसी स्वरूप में ही होती है जिस से अन्तिम फल भी प्रभु स्वरूप की प्राप्ति और उन की अविच्छिन्न सेवा का फल

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