Book Title: Vallabhacharya aur Unke Siddhanta
Author(s): Vajranath Sharma
Publisher: Vajranath Sharma

View full book text
Previous | Next

Page 363
________________ और उनके सिद्धान्त । दिवस में गद्दर तथा रात्रि में रजाई धराई जाती है। ग्रीष्मकाल में चन्दन, गुलाबजल, आदि अर्पण किये जाते हैं। तथा प्रातःकाल से लेकर सायंकाल तक, समय समय पर ऋतु के अनुकूल सतुवा, उत्तम पकवान, पना, अमरस, खीर, दूध, दही, सघाना, माखनमिश्री आदि लोकप्रिय उत्तम पदार्थ प्रभु के भोगादि में पधराये जाते हैं । एकादशस्कंध के 'यद्यदिष्टतमं लोके यचातिप्रियमात्मनः । तत्तनिवेदयेन्मह्यम् ' कथनानुसार किये जाते है और ये उपचार प्रभु में गाढ अनुराग पैदा करने के साधन हैं । और यही भगवान् की आज्ञा भी है।। हमारे यहां नाम सेवा और स्वरूप सेवा ये दो सेवायें प्रसिद्ध हैं । स्वरूप सेवा ( भगवान् के स्वरूप की सेवा) और नाम सेवा (भगवान् के स्वरूप को समझाने वाले ग्रन्थों को पढना पढाना और सुनना) । वैष्णवों को दोनो सेवा करनी चाहिये । स्वरूप सेवा के अनवसर में नामसेवा का करना परम कर्तव्य है । जो लोग स्वरूप सेवा करते हुए भी नाम सेवा नहीं करते, उनकी सेवा अधूरी गिनी जाती है । सेवा सन्तोषजनका और कायादि व्यापार रूपा है । जैसे राज सेवा, गुरु सेवा, पितृ सेवा । किन्तु ऐसी सेवा होना सर्वत्र दुर्लभ है । सेवा दो प्रकार की है । एक साधनरूप

Loading...

Page Navigation
1 ... 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405