Book Title: Vallabhacharya aur Unke Siddhanta
Author(s): Vajranath Sharma
Publisher: Vajranath Sharma

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Page 384
________________ २६४ श्रीमद्वल्लभाचार्य श्रीमदल्लभविट्ठलौ गिरिधरं गोविन्दरायाभिधं । श्रीमद्वालककृष्णगोकुलपती नाथं यदूनां तथा ॥ एवं श्रीरघुनायकं किल धनश्यामं च तदंशजान् । कालिन्दी स्वगुरुं गिरिं गुरुविभुं स्वीयप्रभुंश्च स्मरेत् ।। __ इसके अनन्तर अपना दैनिक कृत्य करे । फिर विद्यार्थीवर्ग अपने अध्ययन में लग जाय । अध्ययन समाप्त कर स्नान करलें तथा संध्यादिक से निवृत्त हो श्री स्वरुप की प्रेमपूर्वक सेवा करें । सेवा के अनन्तर पुष्टिमार्गीय मन्दिर में जा कर प्रभुके दर्शन करें और अनन्तर ठाकुरजी का प्रसाद लेकर अपने २ स्वाध्याय में लग जाय ।रात्रिको यथा शक्य फिर सेवा करें और रात्रिको भगवद्वार्ता नियमित रूप से अवश्य सुनें; या कहें। यह साधारण वैष्णव मात्रका धर्म है। __ अपनी जिन्दगी को सर्वदा सरल और आडम्बर रहित रक्खे । तथा इसपर से अहंता ममता हटा कर जो भी कुछ कार्य करे सब भगवदर्थक करे। यही वैष्णवों का परम कर्तव्य है। वैष्णवों के लिये शास्त्रों का अर्थ तो यह है-- १-मगवान् श्रीकृष्ण की निर्गुण भक्ति के द्वारा उनकी कृपा प्राप्त करनी यही सर्व शास्त्रों का अर्थ है । २-भगवान् ने श्रीगीतोपनिषद् में कहा है

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