________________
और उनके सिद्धान्त ।
अर्थात् ब्रह्म सर्वजगत् का आधारभूत है । माया को वश में रखने वाला, आनंदाकार उत्तम और सर्व प्रापंचिक गुण पदार्थों से और धर्मो से विलक्षण है । जगतः समवायि स्यात् तदेव च निमित्तकम् । कदाचिद्रमते स्वस्मिन् प्रपञ्चेऽपि कचित्सुखम् ॥६॥ ___ वह ब्रह्म ही जगत् का समवायि कारण हैं और वही जगत् का निमित्त कारण भी है । वह ब्रह्म कभी अपने स्वरूप में रमण करता है और कभी प्रपंच में सुखसे रमण करता है।
यत्र येन यतो यस्य यस्सै यद्यद्यथा यदा । स्थादिदं भगवान्साक्षात्प्रधानपुरुषेश्वरः॥ १९॥
अर्थात्-जिसके विषय में, जिस के द्वारा, जिस से, जिस संबंध द्वारा जिस के लियें और जो जो जिस प्रकार से जव होते हैं वह देश वह हेतु वह अपदान वह संबंध वह प्रयोजन और वह पदार्थ सब कुछ प्रधान पुरुष के नियन्ता साक्षात् भगवान् श्रीकृष्ण हैं।
अनन्तमूर्ति तदब्रह्म कूटस्थं चलमेव च । विरुद्धसर्वधर्माणामाश्रयं युक्त्यगोचरम् ॥७१॥
अर्थात्-वह ब्रह्म अनन्तमूर्ति है । कूटस्थ और चल है वह सब विरुद्धधर्मों का आश्रय है और युक्ति के लिये अगम्य है।