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श्रीमद्वल्लभाचार्य की भक्ति देख उसी धातुनिर्मित मूर्तिसे प्रकट होते हैं । इस स्वरूप में ही प्रभु अपने सब धर्मों को प्रकट करते हैं। इस लिये स्वरुप को जो शृंगारादिक हम धारण कराते हैं वे साक्षात प्रभुको ही धारण कराये जाते हैं। इस स्वरूप का अपराध साक्षात् भगवान् श्रीकृष्ण का ही अपराध है। इसी लिये शीतक्रतु में भगवान् के आगे अंगीठी रक्खी जाती है और आपके श्री अंग में गद्दड प्रभृति धारण कराये जाते हैं तथा ग्रीष्मऋतु में पंखा, फुवारा, चंदन और इसी प्रकार के शीतोपचार किये जाते हैं । उपासना मार्ग में मूर्ति के सुख का विचार नही है केवल विधिका ही विचार है । भक्तिमार्ग स्नेहमार्ग है अतः यहां प्रभुके सुखका मुख्य विचार रक्खा गया है । अतः स्वरुप को जिस प्रकार सुख मिले भक्त मात्रको उसी प्रकार आचरण करना चाहिये । इसी दृष्टिको रख हमारे यहां सेवा प्रचलित की गई है। ___ भगवान् श्रीकृष्ण व्रजभूमि में अपने भक्तों का निरोध करने के लिये आविर्भूत हुए उस समय उनके चार व्यूह थे। वासुदेव, सङ्कर्षण, प्रद्युम्न और अनिरुद्ध । ये ही भगवान् की चार मूर्ति हैं।
इन चारों मूर्तियों का कार्य भी विभिन्न रहता है । आसुरों को जहां जहां मुक्ति दी गई है वह वासुदेव का कार्य है। पहले कालात्मना भगवान् संकर्षणके द्वारा मृत्यु उनको मिलती है अनन्तर वासुदेव उनको मुक्ति प्रदान करते हैं ।