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श्रीमद्वल्लभाचार्य
न देगा तो गुरुगत विद्या उसमें कैसे आवैगी । शास्त्रमें लिखा है कि 'गुरुशुश्रूषया विद्या पुष्कलेन धनेन वा । अथवा विद्यया विद्या चतुर्थो नैव विद्यते । गुरुको ईश्वरवत् मानकर सेवा करनेसे विद्या आती है । पुष्कल धन देनेसेभी विद्या आती है । और विद्याके बदले में भी विद्या आसक्ती है किन्तु विद्या आनेके लिये चौथा उपाय नहीं है । जिन्होने आचार्यको सर्वोच्च मान दिया उन्हे ही विद्या आई है । और जिन्होने उसमें थोडीभी त्रुटि की उन्हे विद्या आनेमेंभी उतनी ही त्रुटि रही है यह हरएक मनुष्य अनुभव कर सक्ता है ।
१० - आचार्यको इतना मान देना निष्कारण नहीं है सकारण है । विद्या सिवाय आचार्य में अनेक भगवद्गुण होते हैं । प्रथमतो आचार्य आचार्यरूपसे भगवान्का अवतार है । भगवान्के छः गुणोमें से आचार्य ज्ञानका अवतार है । अत एव आचार्यको भगवान् मानना शास्त्रप्राप्त है ।
११ - दूसरे - आचार्यमें अनेक भगवद्गुण होते हैं । कितने ही भगवद्गुण जो अवश्य अपेक्षित हैं और आते हैं—त्रे इस तरह है
सत्यं शौचं दया क्षान्तिस्त्यागः सन्तोष आर्जवम् । शमो दमस्तपस्साम्यं तितिक्षोपरतिः श्रुतम् ॥ ज्ञानं विरक्ति:
प्रभृति ।
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