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श्रीमद्वल्लभाचार्य निर्गुण पुष्टिमार्ग की स्थापना की ! आपसे दीक्षा लेने का सबसे पहला सौभाग्य दामोदर दास और प्रभुदास जलोटा को प्राप्त हुआ था।
किन्तु विश्रामलेने का अवसर ही कहां था ? आपको तो अभी बहुत सा कार्य करने को था । पुष्टिमार्ग को मारतवर्ष में सर्वत्र सम्मान्य कराना कोई साधारण बात नहीं थी। अतः आप फिर भारतवर्ष में पर्यटन करने चल दिये । समस्त भारत वर्ष में, कन्याकुमारी से लेकर हिमालय और अटक से लेकर कटक तक आपने तीन वार पैदल चलकर ब्रह्मवाद का उपदेश दिया। इस अपने परिश्रम पूर्ण पर्यटन में आपने स्थान स्थान पर विद्वानों की सभा बुलाई तथा उसमें अपने ब्रह्मवाद का मण्डन तथा प्रत्येक स्थान पर प्रभु प्रसादार्थ श्रीमद्भागवतका पारायण किया था। तथा जनता को स्वतत्र उपदेश दे ब्रह्मवाद पर मुग्ध कर अपनी अनुयायीनी बनायी थी। इस कार्य में आपने अपने अनेक वर्ष व्यय किये। इतना परिश्रम किया था तब कहीं आपको सफलता मिली थी । कार्यकर्ताओं को आपके इस अपूर्व परिश्रम से शिक्षा ग्रहण करनी चाहिये । जो लोग चाहते हैं कि परिश्रम बिना ही हम अपना पूर्व गौरव स्थापित रक्खें उन्हें श्रीमहाप्रभुजी के चरित्र से शिक्षा ग्रहण करनी चाहिये ।
जब आप अपने कार्यसे निश्चिन्त होगये अर्थात जब सर्वत्र अपने ब्रह्मवाद को फैला दिया तब आप गृहस्थ हुए।