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और उनके सिद्धान्त। अब साधारण, परन्तु महत्व पूर्ण प्रश्न यह उपस्थित
- होता है कि हमारा यह 'पुष्टिमार्ग' लोक पुष्टिमार्ग कवर्स में कब से प्रचलित हआ। लोगों में साधाप्रचलित हुआ?
" रण भ्रम यह है कि इस पुष्टिमार्ग के आदि प्रवर्तक श्रीवल्लभाचार्यजी हैं । किन्तु यह लोगों की उसी प्रकार की भूल हे जिस प्रकार लोग भगवान् वेदव्यासजी को वेद और पुराणका कर्ता समझते हैं। क्या भगवान् वेदव्यासजी वेद के प्रणेता हैं ? नहीं, वेद और पुराणतो तो स्वयंभू हैं । वेद का तो केवल व्यासजी ने सम्पादन किया है । इसी प्रकार पुष्टिसम्प्रदाय तो अनादि काल से प्रचलित है। हां, आचार्य श्रीवल्लभाचार्यने इसे जनसाधारण में परिचित अवश्य कराया था।
भगवदुपदिष्ट वेद, शास्त्र और पुराण से प्रतिपादित वैष्णव मत के चार सम्प्रदाय हैं । पद्मपुराण में लिखा है
श्रीब्रह्मरुद्रसनका वैष्णवाः क्षितिपावनाः । चत्वारस्ते कलौ भाव्याः सम्प्रदायप्रवर्तकाः ॥ अर्थात्-कलियुग में श्री, ब्रह्म, रुद्र और सनकादि ये चार देव चार सम्प्रदायों को चलाने वाले होंगे। यहां श्री से रामानुज, ब्रह्म से मध्वाचार्य, रुद्र से विष्णुस्वामी और सनक से निम्बार्काचार्य हुए यह जान लेना चाहिये ।
इन्हीं में से विष्णुस्वामी मत के संगृहीता श्रीवल्लभाचार्य