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श्रीमद्वल्लभाचार्य
ब्राह्मण थे । आपकी शक्ति के सन्मुख उस समय के बडे से चडे विद्वान् ब्राह्मण भी शास्त्रार्थ में पराभव को प्राप्त हुए थे और कृष्णदेव राजाकी सभा में तो आपने अपने अद्भुत पराक्रम से समस्त पण्डित मण्डली को परास्त कर दी थी । आश्चर्य की बात तो यह है कि उस समय उनकी अवस्था केवल १४ साल की ही थी !
आपके नाम तथा गुण और स्वरूप, श्रीसर्वोत्तमजी, श्रीमदाचार्य- श्रीस्फुरत्कृष्णप्रेमामृत और श्रीवल्लभाष्टक में विस्तारपूर्वक वर्णित किये गये हैं । वास्तव में
चरणका
स्वरूप.
देखा जाय तो महाप्रभुजी के स्वरूप को समझना चडा कठिन है । प्रभुकृपा से ही उनके स्वरूप को समझा जाता है श्रीगीताजीमें भगवान् ने प्रतिज्ञा की है कि
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यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत । अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
फलतः अधर्मको दूर कर धर्मका स्थापन करना और अपनी लीला के द्वारा भक्तों का निरोध करना ही भगवान का भाचार्यरूप से एकान्त आविर्भाव कारण है । भगवान ने जब देखा कि पृथ्वी पर से ब्रह्मवाद गुप्त होता चला जा रहा है और उस पर मिथ्यावाद का साम्राज्य धीरे २ दृढ़ हो रहा है तब आपने मिथ्यावादादि दूर करने के हेतु और शुद्धा