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और उनके सिद्धान्त।
श्रीलक्ष्मणट्टजी के ३ पुत्र और दो कन्या हुई । प्रथम पुत्र का नाम नारायणभट्ट था। आपश्री को बहुत शीघ्र ही वैराग्य प्राप्त हुआ और आप घर से चल दिये । सन्यासावस्था में आपने अपना नाम केशवपुरी रक्खा था । तपोबल से इननें ऐसी सिद्धि प्राप्त करली थी कि वे पगमें पादुका पहिन कर गंगाजी में उस प्रकार चलते थे जिस प्रकार साधारण मनुष्य पृथिवी पर चलता हो ।
श्रीमदलमाचार्य, प्रभु के आचार्य रूप में अवतार हैं और वे लोककल्याण के लिये ही भारतवर्ष में पधारे यह बात हमी नहीं मानते किन्तु यह मान्यता श्रीमहाप्रभु की भी थी यह बात आपके ग्रन्थों के पाठ करने से भली भांति पाई जा सकती है। भारतवर्ष में यह कोई नई बात नहीं है। रामानुज, मद्ध, निम्बार्क चैतन्यादि महान् विभूति भी अपने २ जन्म का खास प्रयोजन मानती थीं।
इस लियें याद महाप्रभुजी ने अपने आपको वैश्वानर अथवा और कुछ माना हो तो इसमें आश्चर्य की कोई वात नहीं है। ___ कुछ भी हो इतना तो मानना ही पडेगा कि पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक ब्रह्मवाद के स्थापक एवं शुद्धाद्वैत को समझाने वाले श्रीमद्वल्लभाचार्य एक अत्यन्त मेधावी, एक परम पवित्र आचार्य, एक अन्त्यन्त सरल और विद्वान् तेजस्वी