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और उनके सिद्धान्त।
मानो वलीराजा की सभा में भगवान वामन का प्रवेश हुआ हो अथवा कंसाराति भगवान श्रीकृष्ण ने मानो कंस सभा में प्रवेश किया हो! राजाने देखा मानों उसके एकान्त उद्धारक करुणाकर गुरुका पदार्पण सभा में हो रहा है । व्यास तीर्थ ने देखा मानों उनका प्रतिद्वन्दी उहें परास्त करने चला आ रहा है ! वैष्णवोंने देखा मानों उनका रक्षक भगवान इस शरीर में आ रहा है। सारी सभा महाप्रभु के वहां पदार्पण करनेपर कुछ क्षण तक स्तब्ध हो गई ! उस अपूर्व ब्रह्मचारी वेश धारी ब्राह्मण बालकके अद्भुत तेज के आगे सब निस्तेज हो गये। जैसे सूर्य के प्रकाशित होने पर तारागण ! मित्र, शत्रु, उदासीन, वादी, प्रतिवादी सबों ने अपने अपने आसन से उठकर इस अद्भुत वालक का अभिवादन किया । श्रीमहाप्रभुजीने भी इनके इस विनय का यथोचित उत्तर दिया । अनन्तर आपने अपने स्वामाविक मधुर किन्तु स्पष्ट स्वर में पूछा "वाद किस विषय पर हो रहा है ?" जब आपको यथोचित उत्तर दिया गया और सभा की परिस्थिति जब उनके ध्यान में आगई तब आपने अपने ब्रह्मवाद का पक्ष लेकर शास्त्रार्य करना प्रारंभ किया। आपने उस सभा में और सब सम्मान्य विद्वानों के सम्मुख यह सिद्ध कर दिया कि यदि जगत् में कोई वाद श्रेष्ठ और सम्मान्य है तो वह ब्रह्मवाद ही है । श्रीशंकराचार्य