Book Title: Udisa me Jain Dharm
Author(s): Lakshminarayan Shah
Publisher: Akhil Vishwa Jain Mission

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ ग्रन्थ-प्रवेश पपश्री श्री लक्ष्मीनारायण साहू जी ने जीवन की परिणत अवस्थामें पूर्वापर सगति के साथ विधिवत रूपसे जैनधर्मके बारे में एक सय लिखा है। इस प्रथको मोड़ीसा विश्वविद्यालय में देकर इसके लिये डाक्टरकी उपाधि प्राप्त करनेकी सुखद कल्पना उन्हें रही। जैनधर्मके ऊपर,खास कर उत्कलके जैनधर्म के सबध ऐसा दूसरा पथ मेंने पहले नही देखा था । अभी तक प्राप्त पुराविद तय्यानुकूल-उस्कलके धर्मराज्यमें जैनधर्मका जो स्थान है, उसे उन्होंने इतिहास-परंपरा तथा सामाजिक विश्वास पौर अनुष्ठान मादिसे बहु प्रयत्न मोर प्रयासके साथ चुनकर लिखा है और उस पर पालोचना की है। बीच बीच में प्रसगके अनुरोध से उन्होंने ऐतिहासिक गवेषणाके नूतन माविष्कारोके पर जो सादर निर्देश किया है, वह बड़ा ही सुन्दर और उपादेय रहा है। गवेषणाका प्रकार उत्कल तथा भारतके ऐतिहासिक क्षेत्र में ऐसी बहुत-सी बातें हैं जिनको सत्य या निश्चय मान लेना ठीक नहीं होगा । लेकिन मालोचनाके लिये नयो गवेषणाके सिद्धांतोंको सबके सामने रखना उपादेय है। उदाहरण के लिये सम्राट खारवेलके समयका निरूपण और 'मादला पाजि' (पुरी का पचाग) के 'बक्तबाह उपाख्यान' में डा० नवीनकुमार साहु के द्वारा पाविष्कृत मुरुडवशियोके शासनका जो मामास और मालोचना

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 142