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भव्य वर्णन किया गया है। तृतीय सर्ग में चौलुक्य वंश की उत्पत्ति, मूलराज से भीम द्वितीय तक ग्यारह नरेशों का इतिहास, बघेला लवणप्रसाद एवं उसके पुत्र वीरधवल द्वारा भीम के साम्राज्य की रक्षा, वस्तुपाल के पूर्वजों का परिचय तथा वीरधवल द्वारा वस्तुपाल एवं तेजपाल की मन्त्रिपद पर नियुक्ति का वर्णन है । चतुर्थ सर्ग में मन्त्रियों के गुणों का वर्णन तथा वीरधवल द्वारा वस्तुपाल को खम्मात का गवर्नर नियुक्त किये जाने की सूचना है । पंचम सर्ग में वस्तुपाल और लाट देश के चाहमान शासक शङ्ख के मध्य युद्ध और शङ्ख की पराजय का वर्णन है । षष्ठ सर्ग में ऋतुवर्णन, सप्तम में पुष्पावचय, दोलाक्रीडा, जलकेलि और अष्टम सर्ग में संध्या, चन्द्रोदय एवं रतिक्रीडा का वर्णन है। नवम सर्ग में वस्तुपाल की निद्रावस्था में लंगड़ाते हुए धर्म का आगमन, उसके द्वारा वस्तुपाल को तीर्थयात्रा करने का आग्रह किया जाना एवं प्रभात-वर्णन है।
दशम सर्ग में वस्तुपाल तीर्थ यात्रा के लिए प्रस्थान करता है । लाट, गौड़, मरु, कच्छ, अवन्ति, वङ्ग आदि देशों के संघपति वस्तुपाल की संघ यात्रा में सम्मिलित होते हैं । मार्ग में मंदिरों का जीर्णोद्वार एवं देव-दर्शन करते हुए संघ शत्रुञ्जय पहुंचता है। वहां पर्वत पर स्थित आदिनाथ के मन्दिर में भव्य पूजन होता है। एकादश सर्ग में वस्तुपाल ससंघ प्रभास पत्तन में पहुंचकर वहां सोमेश्वर की विधिवत् पूजा करता है । वह प्रियमेल तीर्थं में स्नान कर ब्राह्मणों को स्वर्ण और रत्नों का तुलादान करता है । तदनन्तर अष्टम तीर्थङ्कर चन्द्रप्रभ का पूजन कर संघ गिरिनार पर्वत की ओर प्रस्थान करता है।
द्वादश सर्ग में रैवतक (गिरिनार) पर्वत का भव्य एवं मनोहारी वर्णन है । त्रयोदश सर्ग में रैवतक पर्वत के मुख्य मन्दिर में तीर्थङ्कर नेमिनाथ के अष्टविध पूजन का वर्णन किया गया है । तदनन्तर संघ के धवल्लकपुर वापस आने, वस्तुपाल द्वारा संघ-यात्रियों को भोज देने एवं उन्हें ससम्मान विदा करने का वर्णन है । चतुर्दश सर्ग में वस्तुपाल के धार्मिक एवं लोकोपकारी कृत्यों की चर्चा के पश्चात् नाटकीय ढंग से वस्तुपाल के स्वर्गगमन का वर्णन किया गया है । तदनुसार वस्तुपाल वि. सं. १२९६, माघ, कृष्णा, पंचमी, रविवार को प्रातःकाल सद्गति के साथ स्वर्ग पहुंचा ।१४
___ वसन्तविलास महाकाव्य का अंगीरस वीर है । इसमें वस्तुपाल की दानवीरता, धर्मवीरता, युद्धवीरता एवं दयावीरता का भलीभांति निरूपण किया गया है । वीर रस के परिपोष में रौद्र, वीभत्स एवं अद्भुत रसों की भी सफल व्यंजना हुई है । अष्टम सर्ग में सम्भोग-शृङ्गार की अभिव्यक्ति हुई है । षष्ठ एवं द्वादश सर्गों में कवि ने यमक अलंकार का प्रयोग किया है जो अत्यन्त मनोहरी है। इस महाकाव्य की भाषा प्रौढ़ और प्रवाहपूर्ण है।
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तुलसी प्रज्ञा
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