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तो हर्षोत्फुल्ल मां का हृदय भूम उठता है
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"छोगां माई अति हुलसाई, बांटे धाई हर्ष बधाई । आज न माई तन फूलाई, वय बूढ़ाई सब भूलाई । प्रकृति का मानवीकरण भी यहां किया गया है । मर्यादा - महोत्सव पर लगभग सभी बहिविहारी साधु-साध्वियों का आगमन केन्द्र में होता है--- मिलन के इस दौर में प्रसन्नता का रंग इस ढंग से निखरता है, कि मिलन महोत्सव साकार हो जाता है
और चेतना की कारण है कि इस बलवती होती चली
"गंगा जमना और सुरसती उछल-उछल कर गले मिले। ५२ प्रसन्नता के वेग में ऐसी मनःस्थिति अनुभव गम्य ही है । चलचित्र - परिदृश्य में बंधा यह काव्य - आंख, मन समस्त शक्तियों को बांधे रखने में असाधारण है । यही काव्य-धारा में गहराई से अवगाहन की इच्छा स्वतः जाती है । मेरी स्थूल बुद्धि इसकी सूक्ष्म नब्ज को पकड़ सके संभव नहीं । फिर भी विविध क्षेत्रों व विषयों को अपने में समेटे यह जीवन वृत्त अपने आपमें राजस्थानी साहित्य को अनुपम देन है । यदि इसे आधुनिक युग का महाकाव्य कहा जाय तो शायद अत्युक्ति न होगी ।
सन्दर्भ सूची
१. सुश्री केशेलियन स्पर्जियन
२. चैम्बर्स ट्वेन्टिएथ सेन्चुरी डिक्शनरी
३. Ency Brittanica (Vol. 12. ( page 103 )
४. जार्ज हवेली पोयटिक प्रोसेस० पृ० १४५
५. काव्य में उदात्त तत्त्व पृ० ६९
८.
६. कालुयशोविलास पृ० २४ ७. कालुयशोविलास पृ० २४ कालुयशोविलास पृ० १२ ९. कालुयशोविलास पृ० १४ १०. कालुयशोविलास १४ पृ० ११. कालुयशोविलास पृ० १५ १२. कालुयशोविलास पृ० १८ १३. कालुयशोविलास पृ० १८ १४. कालुयशोविलास पृ० ४४ १५. कालुयशोविलास पृ० १२३ १६. कालुयशोविलास पृ० १४४
खण्ड १९, अंक ४
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