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जाय तो खयाल से अधिक प्रभावित होगा । खयाल में तराना, वाद्य में झाला व नृत्य में पदविन्यास रोगी को अधिक प्रभावित करते हैं, जिससे उसे मानसिक प्रसन्नता प्राप्त होती है ।
भारतीय ऋषि मुनियों ने भी रोग निवारण में संगीत के महत्त्व को स्वीकार किया था । मनोवैज्ञानिकों का ऐसा विश्वास है कि संगीत में अच्छी अच्छी औषधियों के मुकालले रोग निरोधक गुण अधिक हैं । भारत में प्रचलित 'शास्त्रीय संगीत' आजकल बीमारियां कम करने के काम लाया जा रहा है । उपचार के लिए भक्ति-संगीत और वाध पर लोकधुन बजाना अधिक अनुकूल है । प्रयोगतर्त्ताओं ने यह सिद्ध किया है कि 'यायलिन की मधुर ध्वनि' अति तीव्र सिरदर्द को १५ मिनट में दूर कर सकती है । 'हार्प' (Harp) एक वाद्य है जिससे हिस्टीरिया का रोग दूर हो सकता है ।
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भारतीय जनता का लौकिक व्यवहार सदा धर्म से अनुप्राणित रहा है । संगीतकला भी धार्मिक अभिव्यंजना से अछूती न रह सकी । जैन आगमों का जन-जन में प्रचार करने के लिए चलित नामक गीतों का उपयोग किया जाता था ।
इस प्रकार संगीत एक सार्वभौमिक कला है । जिसका सार्वकालिक एवं सार्वदेशिक महत्त्व है । यह सभी धर्मों एवं जातियों के मनुष्यों द्वारा एक स्वीकृत कला रहा है ।
संदर्भ :
१. भारतीय सौन्दर्य दर्शन, ब्रजमोहन चतुर्वेदी पृ० २२
२. संगीत रत्नाकर अ० १, २१
३. नाट्य शास्त्र ४, २६०-६५
४. हमारा आधुनिक संगीत, डॉ० सुशीलकुमार चौबे, पृ० ६८
५. स्थानांग ७।३९
६. स्थानांगवृत्ति पत्र ३७४
७. लंकावतार सूत्र अथ रावणो सहर्ण्य ऋषभ - गांधार- धैवत-निषाद
मध्यम- कैशिक - गीतस्वर
८. स्थानांग ७।४०
९. नारदी शिक्षा ११५५६,७
१०. स्थानांग ७।४८
११. भारतीय संगीत का इतिहास, पृष्ठ १२१
१२. स्थानांग ७।४३
१३. स्थानांग सूत्र ७ ४१
१४. नारदी शिक्षा ११५२४, ५
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तुलसी प्रज्ञा
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