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५८. जैन दर्शन में पंच परमेष्ठी का स्वरूप- -जगमहेन्द्र सिंह राणा ( अंक ३, पृ० १६९ - १७२) ५९. जैन दर्शन में मांसाहार निषेध --- राजवीरसिंह शेखावत ( अंक २, पृ० ८३-९२) ६०. जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में निःशस्त्रीकरण और विश्वशांति - डॉ० बच्छराज दूगड़ (अंक २, पृ० ९३ - १०० ) ६१. जैन दर्शन में मोक्षवाद- - साध्वी श्रुतयशा
( अंक ३, पृ० १९१-२०२) ६२. जैन धर्म और आधुनिक विज्ञान - प्रो० सागरमल जैन ( अंक १, पृ० २१ - ३५) ६३. जैन संस्कृत वाङ्मय के ऐतिहासिक महाकाव्य - डॉ० केशवप्रसाद गुप्त ( अंक ४, पृ० २७७ - २९० )
६४. डॉ० दौलतसिंह कोठारी (१९०६ - १९९३) विज्ञान और अहिंसा का संगम - बलभद्र भारती ( अंक १, पृ० १६-२० ) ६५. णमोकार मंत्र में 'ण' वर्ण का महत्त्व - डॉ० जयचन्द्र शर्मा ( अंक ३, पृ० १६५ - १६८ ) ६६. तुलसी प्रज्ञा खण्ड १८ और १९ की लेख सूची - डॉ० परमेश्वर सोलंकी ( अंक ४, पृ० ३८९ - ३९६) ६७. ध्यान द्वात्रिंशिका में ध्यान का स्वरूप- - समणी चैतन्यप्रज्ञा ( अंक ४, पृ० ३४५ - ३५२) ६८. प्रश्न व्याकरण में अहिंसा का स्वरूप- डॉ० हरिशंकर पाण्डेय ( अंक ४, पृ० ३०७-३१८ )
६९. मगध का मौर्य शासक शालिशूक - उपेन्द्रनाथ राय
( अंक २, पृ० १३६ - १४० ) ७०. मनुष्य का क्रूरतापूर्ण आचरण बंद हो सकता है ? समणी स्थितप्रज्ञा ( अंक ३, पृ० २५१-२५६ ) ७१. महाकवि भिक्षु के क्रांतिकारी आयाम— डॉ० हरिशंकर पाण्डेय ( अंक ३, पृ० २१५-२२० ) ७२. रत्नपाल चरित में बिंबात्मकता --- राय अश्विनी कुमार, हरिशंकर पांडेय ( अंक ४, पृ० २६३-२७६) ७३. रामचन्द्रसूरि एवं गुणचंद्र गणिकृत नाट्य दर्पण में मौलिक चिंतन -- कृष्णपाल त्रिपाठी (अंक ४, पृ० २९२ - ३०६) ७४. रात्रि भोजन विरमण व्रत : विभिन्न अवधारणाएं - - साध्वी सिद्धप्रभा ( अंक ३, पृ० २०३ - २०६ )
तुलसी प्रज्ञा
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