Book Title: Tulsi Prajna 1994 01
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 136
________________ १४. चिन्ता प्राची / चिन्तन : सूरज और मनस् क्रांति अंक ३, पृ० २६३( मुनि विमल सागर ) परमेश्वर सोलंकी २६४ १५. जैन योग ( भाग १-२ ) कला संस्थान, बीकानेर प्राप्ति स्वीकृति १६. जैन काल गणना ( चंद्रकांत बाली) १७. श्री रामदेव प्रकाश ( बड़ा ) रामसिंह वरणा खण्ड -१९ ४६. अध्यात्म और विज्ञान - - युवाचार्य महाप्रज्ञ ( अंक १, पृ० १-५) ४७. अध्यात्म और विज्ञान : परिसंवाद प्रतिवेदन - प्रो० दशरथसिंह ( अंक १, प्र० ३६-४६) ५४. कर्पूर मंजरी में सौन्दर्य भावना ४८. अपडणे -- जौहरीमल पारख ५०. ' अश्रूवीणा' का गीतिकाव्यत्व ( अंक २, पृ० ११५-१२८ ) ४९. अभिज्ञान शाकुन्तलम् में 'अभिज्ञान' शब्द - गोपाल शर्मा ( अंक ३, पृ० १७३ - १७६ ) - राय अश्विनी कुमार, हरिशंकर पाण्डेय ( अंक ३, पृ० १७७ - १८८) ५१. आचार्य कुन्दकुन्द और परवर्ती साहित्य - डॉ० प्रेमसुमन जैन ( अंक २, पृ० ४९ - ५८ ) ५२. आचार्य कुन्दकुन्द का अनेकांत दर्शन - डॉ० अशोक कुमार जैन ( अंक २, पृ० ५९-६८ ) ५२ (क) आचार्य श्री महाप्रज्ञ का साधना दर्शन - समणी स्थितप्रज्ञा ( अंक ४, पृ० ३६७-३७४) - श्री कृष्णराज मेहता ( अंक १, पृ० ६-९) ५३. आत्मज्ञान और विज्ञान का समन्वय - राय अश्विनी कुमार, हरिशंकर पांडेय ( अंक २, पृ० १०१ - ११४) 31 ५५. कालू यशोविलास में चित्रात्मकता -- समणी सत्यप्रज्ञा ५७. जिनागमों का संपादन के० आर० चन्द्र " ( अंक ४, पृ० ३५३ -३६६) ५६. जैन आगमों में हुआ भाषिक स्वरूप परिवर्तन- प्रो० सागरमल जैन ( अंक ४, पृ० २३२-२५० ) खण्ड १९, अंक ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only ( अंक २, पृ० १४१-१६० ) ३९३ www.jainelibrary.org

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