________________
धोरा-धोरा में छोला सा चान्दी रा जाण बरग बिछ।
जम ज्याय जलाशल भी सतीकिती सुन्दर तस्वीर खिचे ॥४
साधु चर्या का मुख्य अंग ही है विहार और वह भी नंगे पैर । नंगे पैर कड़कती सर्दी और इसमें से बनती शरीर की बाह्य व भीतरी स्थिति का एक रेखाचित्र रूपायित हो रहा है।
हाथां पैरां में ब्याउड़ी, काट ज्यूं पर्वत-खोगालां । कालूंढो चेहरो पड़ ज्यावै, जल ज्यावै चमड़ी सीयाला ॥ बेलू-टीलां री बा धरती, पग धरत पराया सा पड़सी।
झरती आंख्यां झरती नाका, कर-शाखा करड़ी ककड़ सी ॥१
मनुष्य ही नहीं—सूर्य पर भी सर्दी का असर आ जाता है इसीलिए---
"सूरज भी तेज तपे कोनी, जाड़े स्यू डरतो वेग छुपै ।''४° ग्रीष्म ऋतु को तप्तता का दृश्य ।। भू ज्यू भट्टी तरणी तावै।
स्वेद निझरणां रूं-रूं झारे ।।४।। ग्रीष्म के बाद पावस की प्रतीक्षा हर वर्ग की प्रतीक्षा है। पावस के प्रारम्भ में ही अनुकूल दृश्य बन जाता है।
अब पावस प्रारम्भ में आयो श्रावण मास । जलधर जल-भर वृष्टि स्यूं पायो घाम प्रवास ।।" प्राकृतिक सुख के साथ बसंत का सौन्दर्य वर्णन भी यहां लब्ध है।
"नीम नीमझर स्यं नमै, आम्र मोर महकंत । कोयल कुहुकुहु मिष पथिक-स्वागत करे बसंत ।।४३ "राजस्थान की लूओ की कोई सानी नहीं लू लागी नागी घणी, सागी आगी रूप ? जलती झाला ज्यूं बै लूबां उमस होश गमावै जी रूं रूं भेद, न स्वेद नीकल
भूख न नीदं सुहावै जी।४४
विवेषतः राजस्थान में सर्दी-गर्मी व वर्षा की विशेष पहचान है तीनों का साथ वर्णन सजीव बन पड़ा है।
सरदी मौसम लक्कड़दाहो, घाम तपै ज्यूं भट्टी । ४५
धरती--टीलों की धरती। राजस्थान कवि की अपनीधरती रही है इसीलिए मरुस्थल के प्रति कवि का विशेष आकर्षण होना भी स्वाभाविक
खण्ड १९, अंक ४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org