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सं० ११२५/ईस्वी सन् १०६९ में रची गयी है। इसमें १५० गाथायें हैं । कृति के अन्त में प्रशस्ति के अन्तर्गत रचनाकार ने अपनी गुरु-परम्परा, रचनाकाल आदि का उल्लेख किया है। इस प्रशस्ति से यह भी ज्ञात होता है कि ग्रन्थकार ने अपने गुरु भ्राता नवाङ्गवृत्तिकार अभयदेवसूरि के अनुरोध पर इस कृति की रचना की थी। इसमें उल्लिखित गुरु-परम्परा इस प्रकार
उद्योतनसूरि वर्धमानसूरि
जिनेश्वरसूरि
बुद्धिसागरसूरि
जिनचन्द्रसूरि
अभयदेवसूरि (वि० सं० ११२५/ई० सन् १०६९ में (संवेगरंगशाला की रचना के प्रेरक) संवेगरंगशाला के रचनाकार)
३. व्याख्या प्रज्ञप्ति वृत्ति---चन्द्रकुल के आचार्य वर्धमानसूरि के प्रशिष्य और जिनेश्वरसूरि एवं बुद्धिसागरसूरि के शिष्य अभयदेवसूरि ने वि० सं० ११२८/ईस्वी सन् १०७२ में इस कृति की रचना की। अभयदेवसरि ने व्याख्याप्रज्ञप्ति सहित ९ अंग ग्रन्थों पर वृत्तियां लिखी हैं, इसी कारण ये नवाङ्गवत्तिकार के रूप में विख्यात रहे हैं । व्याख्याप्रज्ञप्तिवत्ति की प्रशस्ति में वृत्तिकार ने अपनी गुरु-परम्परा, रचनाकाल, रचनास्थान आदि का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है :
वर्धमानसूरि
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जिनेश्वरसूरि
बुद्धिसागरसूरि
अभयदेवसूरि (वि० सं० ११२८/ईस्वी सन् १०७२ में
___ व्याख्याप्रज्ञप्तिवृत्ति के रचनाकार) ४. सणंकुमारचरिय (सनत्कुमारचरित) श्वेताम्बर जैन परम्परा में सनत्कुमार की चौथे चक्रवती के रूप में मान्यता है। इनके जीवनचरित पर विभिन्न जैन ग्रन्थकारों की कृतियां उपलब्ध होती हैं। इनमें सबसे प्राचीन है
खण्ड १९, अंक ४
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