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१२३६ में लिपिबद्ध की गयी एक प्रति शांतिनाथ जैन भंडार, खंभात में संरक्षित है जिसके प्रतिलेखन प्रशस्ति में चन्द्रगच्छीय मुनिजनों की गुर्वावली दी गयी हैं, जो इस प्रकार है :
मानदेवसूरि (प्रथम) मानतुंगसूरि (प्रथम) बुद्धिसागरसूरि
प्रद्युम्नसूरि
देवचन्द्रसूरि
पूर्णचन्द्रमूरि
मानदेवसूरि (द्वितीय) मानतुंगसूरि (द्वितीय)
पद्मदेवसरि (वि० सं० १२९२/ईस्वी सन १२३६ में लिखी गयी योगशास्त्रवत्ति की दाताप्रशस्ति
में उल्लिखित) २. आवश्यकसूत्र की पुस्तक प्रशस्ति ---चन्द्रगच्छीय यशश्चन्द्रसूरि की प्रेरणा से वि० सं० १२९२/ ई० सन् १२३६ में एक श्रावक द्वारा लिपिबद्ध करायी गयी आवश्यकसूत्र की प्रतिलिपि की प्रशस्ति, में चंद्रगच्छीय उक्त आचार्य की गुरु-परम्परा दी गयी है, जो इस प्रकार है :
वर्धमानसूरि गुणरत्नसूरि भुविदेवसूरि यशश्चन्द्रसूरि (इनकी प्रेरणा से वि० सं०
१२९२/ई० सन् १२३६ में आवश्यकसूत्र की प्रतिलिपि की गयी)
तुलसी प्रज्ञा
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