________________
३. उत्तराध्ययनसूत्र की पुस्तक प्रशस्ति- चन्द्रगच्छीय रत्नाकरसूरि ने वि० सं० १३०८/ईस्वी सन् १२५२ में उत्तराध्ययनसूत्र की प्रतिलिपि की। इसको प्रशस्ति" में उन्होंने अपने गच्छ की लम्बी गुर्वावली दी है, जो निम्नानुसार है :
नन्नसूरि वादिसूरि सर्वदेवसूरि प्रद्युम्नसूरि भदेश्वरसूरि देवभद्रसूरि सिद्धसेनसूरि यशोदेवसूरि मानदेवसूरि रत्नप्रभसूरि देवप्रभसूरि रत्नाकरसूरि (वि० सं० १३०८/ई० सन्
१२५२ में उत्तराध्ययनसूत्र
के प्रतिलिपिकर्ता) ४. पिण्डविशुद्धिसावचूरि की पुस्तक प्रशस्ति --वि० सं० १४१०/ ईस्वी सन् १३५४ में देवकुलपाटक में किन्हीं आनन्दरत्नगणि के परोपकारार्थ उक्त ग्रन्थ की प्रतिलिपि की गयी। यह बात उक्त प्रति की प्रशस्ति" से ज्ञात होती है। इस प्रशस्ति में चन्द्रगच्छ के नायक सोमसुन्दरसूरि, उनके शिष्य साधुराजगणि आदि का उल्लेख है।
सोमसुन्दरसूरि
साधुराजगणि
साधुराजगणिशिष्य (?) ५. युगप्रधानयंत्र की प्रतिलिपिप्रशस्ति-देवेन्द्रसूरि द्वारा प्रणीत युगप्रधानयंत्र की एक प्रति वि० सं० १४१३/ ईस्वी सन् १३५७ में चन्द्रगच्छीय कीर्तिभुवन द्वारा लिपिबद्ध की गयी। इसकी प्रशस्ति" में प्रतिलिपिकार ने अपनी गुरु-परम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है : बंड १९, अंक ४
३२७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org