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त्रिषष्टि शलाका पुस्प-चरित्र; पर्व १. सर्ग२.
तीनोंलोकोंमें फैल गया। नौकरोंने नगारे नहीं बजाए थे तो भी बादलोंकी गड़गड़ाहटके समान गंभीर शब्दवाले दुंदुभि आकाशमें वजने लगे; उनसे ऐसा मालूम होता था कि खुद स्वर्गही आनंदसे गर्जना कर रहा है। उस समय जब नारकियोंको भी क्षणभरके लिए, पहले कभी नहीं हुआ था वैसा, सुख मिला तब तिथंच, मनुष्य और देवताओंको सुन्न हो इसके लिए तो कहनाही क्या है ? मंद मंद बहती हुई हवात्रोंने, सेवकोंकी तरह जमीनकी धूलिको दूर करना शुरू किया। बादल चेलक्षेप (वत्र गिराने ) और सुगंधित जलकी वर्षा करने लगे; इससे पृथ्वी वीज बोया हुआ हो ऐसे उच्छवास पाने लगी ( प्रोत्साइन पाने लगी)। (२६४-२७२) ___उस समय अपने आसनोंके हिलनेसे भोगकरा, भोगवती, सुमोगा, भोगमालिनी, तोयधारा, विचित्रा, पुष्पमाला और अनिंदिताचे आठ दिशाकुमारियाँ तत्कालही अघोलोकसे भगवानके सूतिकागृहमें आई। आदि तीर्थकर और तीर्थकरकी मावाचो प्रदक्षिणा देकर कहने लगी, हे जगन्माता! हे जगदीपकको जन्म देनेवाली देवी! हम आपको नमस्कार करती हैं। हम अपोलोको रहनेवाली आठ दिशाकुमारियाँ पवित्र तीर्थकर जन्मको अवविज्ञान द्वारा जानकर, उनके प्रभावसे, उनकी महिमा करनेके लिए यहाँ आई हैं। इससे आप भयभीत न हों। फिर उन्होंन, इशान विदिशामें रहकर एक सूतिकागृह बनाया। उसका मुख पूर्व दिशाकी तरफ था और उसमें एक हजार खंभे थे। उन्होंने संवर्व नामकी वायु चलाकर सूतिकागृहके चारों तरफ एक योजनतकके कंकर और काँटे दूर