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त्रिपष्टि शलाका पुन्प-चरित्र
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४८-पुष्पशकटिका [फूलोंके न्या ने, पालखियाँ वगैरा बनाने
की कला ४६-निमित्तज्ञान
[७२, शकुनमत (३२ से ४२ तक ५०-यंत्र मातृका [ सजीव या की कलायें) ४८. चार
निर्जीव यंत्रोंकी रचना] १. प्रतिचार] ५१-वारणमातृका स्मरणशक्ति
याद रखने की कला; ५२-संपाच्य [ कोई आदमी
कविता बोलता हो उसके साथही दूसरा आदमीजिसे वह कविता न पाती हो-भी एकाध अगला शब्द सुनकर वह ऋविता बोल सके ऐसीकला जैनशाखों में इसको पदानुसारिणी
बुद्धि कहते हैं। ५३. मानसी कान्यक्रियापन,
उत्पल वगरहकी आकृतिवाले श्लोकोंमें खाली जगहों
को भरना] ५४-अभिधानकोश [शब्दकोश
कान्नान ५५-छंदोविज्ञान
२१. पायो २३. मागघिका
२४. गाथा २५. गीति २६. श्लोक
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