Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Author(s): Krushnalal Varma
Publisher: Godiji Jain Temple Mumbai

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Page 838
________________ १६] त्रिपष्टि शलाका पुरुप-चरित्र कालके चार भेद हैं-१-प्रमाणकाल, २-यथायुनिवृत्तिकाल : ३-मरणकाल और ४-श्रद्धाकाल । १-प्रमाणकाल दो तरह का है-दिन प्रमाणकाल और रात्रि प्रमाणकाल । चार पौरुषी-पहरका दिन होता है और चार पहरकी रात होती है। दिन या रातकी पहर अधिकसे अधिक साढे चार महर्त की और कमसे कम तीन पहरकी होती है। जब पहर घटती-बढ़ती है तब वह मुहूर्तके एक सौ वाईसवें भाग जितनी घटती या बढ़ती है। जब दिन बड़ा होता है तब वह अठारह मुहूर्तका होता है और रात छोटी यानी बारह मुहूर्तकी होती है; जब रात बड़ी होती है तब वह अठारह मुहूर्तकी होती है और दिन छोटा यानी बारह मुहूर्तका होता है। __ आपाढ़ मास की पूर्णिमाको, दिन अठारह मुहूर्तका और रात बारह मुहूर्तकी होती है। पोप महीनेकी पूर्णिमाको रात अठारह मुहूर्तकी और दिन बारह मुहूर्तका होता है। चैत्री पूर्णिमा और आश्विनी पूर्णिमाको दिन-रात समान यानी पन्द्रह- . पन्द्रह मुहूर्तके होते हैं। . २-यथायुनिवृत्ति काल-देव, मनुष्यादि जीवों ने जैसी आयु बाँधी हो उसके अनुसार उसका पालन करना। ३-मरणकाल-जीवका एक शरीरसे अलग होने का समय । ४-अद्धाकाल-यह सूर्यके उदय और अस्त होनेसे मापा जाता है । यह अनेक तरहका है । कालके छोटेसे छोटे अविभाज्य भाग को समय कहते हैं। ऐसे असंख्य समयोंकी एक प्रावलिका होती है।

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