Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Author(s): Krushnalal Varma
Publisher: Godiji Jain Temple Mumbai

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Page 840
________________ त्रिषष्टि शलाका पुनय-चरित्र बालका अग्र भाग; ऐसे आठका, पूर्व विदेहके मनुष्योंके, एक वालमा अग्र भाग ऐसे पाठकी एक लिना (लीक); अाठ लिना की एक यूका (ज) ाठ काका एक यवमध्य; आठ यवमध्याचा एक अंगुलः [छ: अंगुलका एक पाद, बारह अंगुलका एक बालिश्त, चोवीस अंगुलका एक हाथ, ४८ अंगुलकी एक कुति; ६६ अंगुलका एक दंड (धनुष्य युग, नालिका, अन अयवा मुसल) होता है। ऐसे २००० दंड या धनुषका एक कोस और ऐसे चार कोसका एक योजन होता है। ऐसा एक योजन आयाम-विष्कम (लम्बाई चौड़ाई) वाला, एक योजन ऊँचाई वाला और सविशेष नीन योजन परिधिवाला एक पल्य अर्थान खड़ा हो; उसमें एक दिन उगे, दो दिनके उगे, तीन दिनके उंगे और अधिक अधिक साठ दिनके टोहए करोड़ों वालोंके अगले मागासे वह बड़ा मुंह तक ठसाठस भरा हो; जिर उस पल्य यानी बई मेंस ली ली बरसके बाद एक एक बालाग्र निकाला जाए, फिर जितने बरसाने वह वा बिलकुल खाली हो जाए चने वर्षाको एक पल्योपन कहते हैं। ऐसे कोटाकोटि पल्योरमको १० गुणा करनेसे निवने बरस पाते हैं उतने बरसों का एक सागरोपन होता है। बीस कोटाकोटि सागरोपमा एक कालचक्र गिना जाता है। (देस्रो पेज १२२-१२३) [मगवनी नगन ६ उद्देशक से] ५-चरण सत्तरी ___५. महानद-अहिंसा, सत्य, अचार्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह। १०. यतिवर्म-जमा, मात्र, पात्र, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, श्राचिन्य, ब्रह्मचर्य । (इसे उत्तमधर्म भी कहते हैं।)

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