Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Author(s): Krushnalal Varma
Publisher: Godiji Jain Temple Mumbai

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Page 839
________________ टिप्पणियाँ [१७ । .२५६ आवलिकाका एक क्षुल्लक भव; १७ से अधिक क्षुल्लक भवका एक श्वासोश्वास; व्याधिरहित एक प्राणीका एक श्वासो. श्वास एक प्राण; ७ प्राणका एक स्तोक; ७ स्तोकका एक लव; ७७ लवका एक मुहूर्त (३७७३ श्वासोश्वासका एक मुहूर्त); ३० मुहूर्तका एक दिन-रात; १५ दिन रातका एक 'पक्ष'; दो पक्षका एक मास; दो मासकी एक ऋतु; तीन ऋतुका एक अयन; दोअयनका एक वर्ष; १२ वर्षका एक जुग; ८४ लाख वर्षका एक पूर्वाग; चौरासी लाख पूर्वागका एक पूर्व । इसी तरह त्रुटितांगत्रुटित; अडडांग-अडड; अववांग-अवव; हू हूआंग, हू हू श्र; उत्पलांग, उत्पलपद्मांग, पद्मा नलिनांग, नलिन; अर्थनिउरांग, अर्थनिउर; अयुतांग, अयुत; प्रयुतांग, प्रयुत; नयुतांग, नयुत; चूलिकांग, चूलिका; शीर्षप्रहेलिकांग, शीर्पप्रहेलिका। यहाँ तक संख्यावाचक शब्द हैं। इसके बाद संख्यासे नहीं; परन्तु उपमासे ही काल जाना जा सकता है। इसे औपमिक काल कहते हैं। यह दो तरहका है:-एक पल्योपम और दूसरा सागरोपम। . १. पल्योपम-जिसका फिर भाग न हो सके वह परमाणु अनन्त परमाणुओंके समागमसे एक उच्छलक्षणशक्षिणका; इन 'आठकी एक लणक्षिणका; इन पाठका एक ऊर्ध्वरेणु; इन आठका एक त्रसरेणु, इन पाठका एक रथरेणु;आठ रथरेणुका देवकुरु और उत्तरकुरुकेमनुष्योंके, एक बालका अग्रभाग होता है; ऐसे पाठका, हरिव और रम्यक मनुप्योंके, एक बालका अप भाग ऐसे पाठका, हेगवत और ऐरावत के मनुष्योंकि, एक -- -

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