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सम् चाँया सगरका दिग्विजयी होना और चक्रवर्तीपद पाना
उधर सगर राजाके शवमंदिरमें सुदर्शन नामक चक्ररत्न उत्पन्न हुआ। उस चक्रकी धारा स्वर्णमय थी, उसके बारे लोहितात रत्नके थे और विचित्र माणिक्यकी घंटिकाओंके समूहसे वह शोभता था। वह चक्र नंदीघोष सहित था।निर्मल मोतियोंसे सुंदर लगता था। उसकी नाभि वनरत्नमय थी। वह घुघरियोंकी श्रेणीसे मनोहर मालूम होता था और सभी ऋतुओंके फूलोंसे अर्चित था। उसपर चंदनका लेप लगा हुआ था। एक हजार देवताओंसे वह अधिष्ठित था और आकाशमें अधर ठहरा हुआ था।
मानो सूर्यका मंडल हो, ऐसी ज्वालाओंकी पक्तियोंसे विकराल ऐसे उस चक्रको प्रकट होते देख शवागारके अधिकारीने उसे नमस्कार किया। फिर विचित्र पुष्पमालाओंसे उसे पूजकर खुशी खुशी उसनेसगर राजाको इसके समाचार सुनाए। यह सुनकर गुरु के दर्शनकी तरह सगर राजाने सिंहासन, पादपीठ और पादुकाका तत्कालही त्याग किया।मनही मन चक्ररत्नका ध्यान घर,कुछ कदम उसकी तरफ चल सगर राजाने उसको नमस्कार किया। कहा है,
......"देवतीयंती यदखाण्यत्रजीविनः।" [अखजीवी लोगोंके लिए उनके भन देवके समान होते