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७..] त्रिपष्टि शलाका पुरुप-चरित्रः पर्व २. सर्ग ४.
गर्जना करके गुंजाता है। इस तरह तैयार होकर सेनापति सिंधुनदीके प्रवाह के पास आया। उसने हाथसे चर्मरत्नको स्पर्श . किया, इससे वह बढ़कर जहाजसी प्राकृतिवाला बन गया। उसमें सेनासहित सवार होकर सेनापति सिंधुनदी उतरा।लोहेके ग्→टेसे जैसे उन्मत्त हाथी छूटता है वैसेही, महावलवान सेनापति सिंधुके प्रवाहको पार कर सेनासहित चारों तरफ फैल गया। उसने सिंहल जातिके, वर्वर जातिके, टंकण जातिके
और दूसरे म्लेच्छ जातियोंके एवं यवनोंके द्वीपॉपर आक्रमण किया। कालमुख, जोनक और ताठ्यपर्वतके मूलमें रही हुई
अनेक म्लेच्छ जातियोंसे उसने स्वच्छंदता सहित देह लिया। सभी देशोंमें श्रेष्ठ कच्छदेशको, बड़े बैलकी तरह, उस सेनापतिने वशमें कर लिया। वहाँसे लौट, सभी म्लेच्छोंको जीत, वहाँफी समतल भूमिमें, जलक्रीड़ा करके निकले हुए हाथीकी तरह, उसने मुकाम किया । म्लेच्छ लोगोंके मंडपों, नगरों और गाँवोंके अधिपति तत्कालही वहाँ ऐसे खिंचकर आये जैसे पाश (जाल) में फंसे हुए प्राणी विंचकर पाते हैं । तरह तरहके आभूपण, रत्न, वस्त्र, सोना, चाँदी, घोड़े, हाथी, रथ और दूसरे भी अनेक उत्तम पदार्थ-जो उनके पास थे-लाकर उन्होंने इस तरह सेनापतिको भेट कर दिए जिस तरह किसीकी रखी हुई धरोहर वापस लाकर सौंपते हैं। फिर उन्होंने सेनापतिसे कहा, "हम आपके वशमें, कर देनेवाले नौकरोंकी तरह रहेंगे।"
(१५४-१७३) ___ उनसे भेटें स्वीकार कर, उनको विदा दे, सेनापति रत्न चर्मरत्नसे सिंधु पार हुआ। और चक्रवर्तीके पास श्राफर उसे