Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Author(s): Krushnalal Varma
Publisher: Godiji Jain Temple Mumbai

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Page 789
________________ श्री अजितनाथ-चरित्र होगी।" फिर उसने ब्राह्मणको, धरोहरकी तरह, अपने अंगरक्षकोंको सौंपा और सभा विसर्जन की। उस समय नगरके लोग तरह तरहकी बातें करने लगे।-"अहो ! आजसे सातवें दिन महान कौतुक देखने को मिलेगा।" "अफसोस ! उन्मत्तकी तरह बोलनेवाला यह ब्राह्मण सातवें दिन मारा जाएगा।" "शायद युगांतर होनेवाला है अन्यथा अपनी जान देनेको कोन इस तरह बोलेगा ?" ब्राह्मण सोचने लगा, मैं सातवें दिन सव. को अंचरजकी वात बताऊँगा। उत्सुकताकी अधिकतासे दुखी होते हुए ब्राह्मणने बड़ी कठिनतासे सात दिन विताए । संशय मिटानेको उत्सुक बने हुए राजाने भी बार वार गिनकर छह दिन छह महीने की तरह बिताए। सातवें दिन राजा चंद्रशाला (छत) पर बैठकर ब्राह्मणसे कहने लगा, "हे विप्र, आज तेरे वचनकी और जीवनकी अवधि पूर्ण हुई। कारण, तूने कहा था कि सातवें दिन प्रलयके लिए समुद्र उछलेगा, मगर अवतक तो कहीं ज्वारका नाम भी नहीं दिखाई देता। तूने सबका अलय वताया था, इसलिए सभी तेरे बैरी हुए हैं। यदि तेरी यात झूठी होगी तो वे सभी तुझे दंड दिलानेका प्रयत्न करेंगे। मगर 'तू एक जंतुमात्र ! तुझे सजा करनेसे मुझे क्या लाभ होगा ? इससे अब भी तू यहाँसे चला जा। जान पड़ता है, तूने यह बात उन्मत्त दशामें कही है।" ( ३१६-३२६) फिर राजाने अपने रक्षकोंको आज्ञा दी-"इस विचारे गरीवको छोड़ हो । यह भले सुखसे यहाँसे चला जाए।" उस समय, जिसके अोठोंपर हँसी खेल रही है ऐसा, वह ब्राह्मण बोला, " महात्माओंके लिए यह योग्य है कि वे सबपर दया

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