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सर्ग छटा अजित स्वामी और सगरके दीक्षा व निर्वाणका वृत्तांत
उस समय चक्रीकी सेनामें योद्धाओंका ऐसा कोलाहल होने लगा जैसा जलाशयके खाली होनेपर जलजंतुओंका होता है। मानो किम्पाक फल (जहरी कुचला) खाया हो, मानो जहर पिया हो अथवा मानो सर्पने काटा हो ऐसे कई मूर्छावश होकर पृथ्वीपर गिर पड़े कई नारियलकी तरह अपना सर पछाड़ने लगे; कई मानो छातीने गुनाह किया हो ऐसे उसे बारबार पीटने लगे; कई मानो दासीकी तरह किंकर्तव्यविमूढ़ हो, पैर पसार, बैठे रहे; कई वानरकी तरह कूदने के लिए शिखरपर चढ़े कई अपना पेट चीरनेकी इच्छासे यमराज जी जिह्वाके समान छुरियाँ म्यानसे बाहर निकालने लगे; कई फाँसी लगाने. के लिए, पहले क्रीड़ा करने के लिए जैसे झूले बाँधे जाते थे वैसे, अपने उत्तरीय वन वृक्षोंकी शाखाओंपर बाँधने लगे; कई खेतोमेंसे अंकुर चुनते हैं वैसे मस्तकपरसे केस चुनने लगे; कई पसीनेकी बूंदोंकी तरह शरीरपरके वस्त्रोंको फेंकने लगे; कई पुरानी भीतोंको आधार देने के लिए रखे हुए खंभोंकी तरह कपोलपर हाथ रखें चिंता करने लगे और कई अपने वनोंको भी अच्छी तरह रखे बगैर पागल श्रादमीकी तरह शिथिल अंग होकर पृथ्वीपर लोटने लगे। (१-६)
उस समय अंत:पुरकी स्त्रियों के हृदयको मथनेवाले, जुदा