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६१२ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व २. सर्ग ३.
रही थीं और कई हिलाकर वजाए जा रहे थे। गंधर्व सुंदर स्वरोंसे शुद्ध गीत गा रहे थे, व चारण-भाट और ब्राह्मण वगैरा असीसें दे रहे थे। इस तरह महोत्सबके साथ, अजित स्वामी की आज्ञासे कल्याणकारी पूर्वोक्त अधिकारियोंने, विधि सहित सगर राजाका राज्याभिषेक किया। उसके बाद, मांडलिक राजाओंने, सामंतोंने और मंत्रियोंने हाथ जोड़कर उगते हुए सूर्यकी तरह सगर राजाको प्रणाम किया। नगरके मुख्य मनुष्य, हाथों में उत्तम भेटें ले लेकर सगरके पास आए। उन्होंने नवीन चंद्रकी तरह सगर राजाको,सामने भेटें रख रखकर प्रणाम किया। प्रजा. जन यह सोचकर प्रसन्न हुए कि स्वामीने अपनी प्रतिमूर्तिके समान मगरको राज्यगद्दीपर बिठाया है। हमारा त्याग नहीं किया है । (१६३-१७७)
___ अजितनाथकी दीक्षा उसके बाद दयाकं समुद्ररूप अजित स्वामीने इस तरह दान देना प्रारंभ किया जिस तरह वर्षा ऋतुका पानी बरसना प्रारंभ करता है। उस समय तिर्यक्रजभक देवताओंने इंद्रकी आज्ञा ओर कुवेरकी प्रेरणा पाकर, नष्टःभ्रष्ट हए. स्वामी विनाके, चिह्न विनाके, पर्वतकी गुफाओंमें रहे हुए, श्मशानमें या अन्य स्थानों में गड़े हुए धनको ला लाकर, चौराहेमें, चौकमें, तिमुहानेमें और आने जानेकी जमीनपर रखा। फिर अजित स्वामीने सारं नगर (और राज्य ) में हिंढोरा पिटवा दिया कि "जिसको धन चाहिए वह आए और इच्छानुसार ले जाए। फिर सूर्योदयसे भोजन के समय तक अजित स्वामी दान देने वैठते थे और जो जितना धन चाहता था उसे उतनाही धन-दान देते