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३७८ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुप-चरित्रः पर्व १. सर्ग..
की सेना सामने चक्रीकी सेना, श्रागके सामने घासकी गंजीके समान है, बाहुबलीकी सेनाक सामने चक्रीकी सेना तुच्छ है, इन महावीर बाहुबली के सामने चक्रवनी पसे नान पड़ते हैं,मानों अष्टापदके सामने हाथीका बया; यद्यपि भूमिमें चक्रवर्ती और स्वर्गमें इंद्र बलवान माने जाते हैं, मगर मुझे नो भगवान ऋषभदेवजीका यह छोटा पुत्र बाहुबली दानाका अंतरवर्ती या दोनोंसे अर्द्धवर्ती-अधिक मालूम होता है; बाहुवली एक तमाचंके सामने चक्रीका चक्र और इंद्रका वन निष्फल है। इस बाहुचलीस विरोध करना माना गयको कानस या सर्पको मुट्टीमें पकड़ना है। बाय जैन एक मृगको पकड़कर संतुष्ट रहता है वैसेही, इतनसे भूमिभागको नकर संतोपसे बैठ हुए बाहुबलीको, अपमान करके, व्यर्थही शत्रु बनाया गया है । अनेक राजायोंकी संवायासे संतुष्ट न होकर बाहुबलीको, सेवाके लिए बुलाना, मानों कंसरीसिंहको सवारी के लिए बुलाना है। स्वामीके हितकी इच्छा रखनेवाले मंत्रियोंको श्रीर साथही मुझे भी धिकार है कि, हमने शत्रुकी तरह पाचरण किया। लोग मेरे लिए कहेंगे कि,मुवेगन जाकर बाहुबलीस लड़ाई कराई। श्रहो! गुणको दूषित करनेत्राने इस दून-क्रमको धिक्कार है !" रस्में इस तरहकं विचार करना हुया मुबंग कई दिनों के बाद अयोध्या श्रा पहचा । दरवान उसे समाम त गया। यह प्रगाम कर. हाथ जोड़ समामें बैठा, नव चक्रवर्तीन श्रादरक सहित उससे पूछा,
(१६४-२१०) "ह मुबंग मेरे छोटे भाई बाहुबली सफुशल तो हैं ? तुम अल्दी पाए इसलिग मुक नाम हो रहा है. ? या बाहुपतीने