Book Title: Trinshshloki
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir छनचोलेजिरावामित्याह सच्चोरेनुषिरात्रमिति मोलेरूनचीलेपरेनेत्रिरात्रम्॥निबनचूहकानांतत्रि राबाहिरिष्यतइनिमनुवचनान वर्षत्रयानंतरंयाचदुपनयनंभविशेषेणत्रिरात्रमित्याह विदिन मितरथाप्याब्रनादिति इनरथाअक्तचौलेअपिशब्दात्कृतचोलेचसंस्थिनेतदुपरिवर्षज्यादूर्वउपनयना यात्रिरात्रं॥नथाचायमर्थप्रथम देहनचोलस्ययाचदुपनयनंत्रिरात्रंावर्षत्रयादूर्वअलनचोलसन्चौलतुधिराधिदिनमितरथाप्यावताज्जात्यशोचमातापित्रोस्तुपुत्रोत्रिदिनमदशने सन्निधौनश्चेष्टे॥३॥स्थापियावदपनयनंत्रिरात्रमितिरात्रमाव्रतोद्देशादितिवचनात्॥एवंचयोच स्थाविशेषेणाशौचविशेषमभिधायजात्याशीचमाह। जात्याशोचमिति। मनदुपरिउपनयनानं तरंजात्याशौचंदशाहादिकमिनियावत्॥ दशरात्रमतःपरमिनिवचनात् // एवमवशिषे-॥ For Private And Personal Use Only

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