Book Title: Trinshshloki
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 14 हस्तयथाविधीत्यंगिरोवचनात् ॥आशोनांतेयकलाशचिर्भवतितदाह पूर्णेस्मालेनिनपूर्णेआशी // चेसचेलंसवस्त्रंयथाभवनितथास्मात्वाविहितकृतीवेदोक्तस्वाधिकारिकदेवपितृकार्यअहंकायो-|| ग्याःस्युःज्ञातयइतिशेषः // सूनिकायाविशेषमाह॥ सूतिका विनिक सूतिकातुपुनस्त्रिंशदात्रं पूर्णेस्मातासलंपिहिताहतकताबईकाःसूतिकातुत्रिंश द्रानयोग्यासरपिटकरणेविंशतिपुत्रसूरक्त॥११॥ // निहितहितकचौपितृसरकार्यशोग्यानझपानभवतीत्यर्थः तत्कन्याप्रसवे॥पुत्रप्रसवेत्तुविशेषमा / हाविंशतिपुत्रसूस्त्विति।पुत्रजननीतुविशदात्रमुभयकार्ययोग्यानभवतीत्येवान्वय सूतिकांप | 14 अवतीम विशदात्रेणकर्माणिकारयन्मासनस्त्रीजननीतिपैतानासस्परणात॥१९॥ // 5 For Private And Personal Use Only

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