Book Title: Trinshshloki
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Page 55
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir // // ॥अथवाविंशेनरत्नेनरहनेतिकर्तव्यनाधिकारणाचाह। समिनि // एतत्सर्वाहादिलत्यम्। उपनय नविधेःप्राक्तूष्णीममंत्रकमेवविदध्यातथाचोत्तमलोमाक्षिणातूणीमदोदकंजर्यातणीसंस्कारम वचतिक्षपरंतुउपनयनानंतरस्नग्रयोक्तैरतनहिधानदिध्यादिनिएष्टम् अत्रचउपेत्तश्चेनदाआहिना सर्नणीविदध्यादुपनयनविध प्रापरंतुस्वशारनागृत्योक्ते स्तहिधानै सकलशंदविधिज्येष्टपुत्रोवरोवा। .ग्न्यादिनाबनार्थचनियाज्ञव नल्स्यदचवमनुसंधेयम् इरानीमधिकारिणनिरूपयति // सकलेति // सकलंसर्वशवविधिप्रथमदिनमा रभ्यदशा हो स्मग्रन्योक्तंकर्मज्येपपुत्रोऽनुपपत्यावरोवाविदध्यारितिसंबंधः॥ पुत्राभावेकर्तविशेषदर्श For Private And Personal Use Only

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