Book Title: Trinshshloki
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Page 67
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir अष्टाविंशनिवनेनदशाहसंबंधिविधिमाह संस्कर्नेति॥ ॥संस्कनादाहक दहनत रहनानंतरंभ / त्यहंपनिदिनंदशाहावधिदर्भपंजेभूमावास्यत्तदर्भपंजएकैकंपिड्समधुयथाभवनितथाआचपेनयार दशाहमेकैकमेवपिडंदद्यादितिभावःतथाचस्मृतिः॥ नवनिर्दिवसेर्दद्यान्नवापिंडान्समाहितः।। दशमंपिंडस संस्कन्दर्भपुंजेसमधुदहनना प्रत्यहाँपंडमेकंभूमा देवावपेतप्रथमदिनचरुद्रव्यमेवोपरिशत्॥ // स्मज्यरात्रिशेषेझचिर्भवेत्॥ नाणनिमंत्रणाभिप्रायेणभत्रभूमावित्यनेनपावाणादिव्या दतिःसूनि / तातदुक्तंशरवेन।भूमीमाल्यंपिडपानीयंअनुलेपनानियुरिनि।पिंडदानेद्रव्यनियममाह॥ // For Private And Personal Use Only

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