Book Title: Trinshshloki
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ध्यायादीन्नीलानिहत्यब्रह्मचारीनदोषारोपभानभवेदिति ।बह्मचारीब्रतान्नानश्यतइतिच॥ आचा मातापित्तउपाध्यायान्नित्यापिननीभवेत्॥ ब्रह्मचारीबातीयत्रोवनपुनस्तस्यवतवंशावतातियाज्ञ वल्क्यवचनान॥ ॥अन्यनिहरणेदोषमाह। नेपोन्यमिति तश्यउपाध्यायादिश्योन्यानहनः तेश्योन्यनितोस्यवतमापविनतंत्रश्यनेवश्यमेव // 12 // अन्यनिहरणकुर्वनोऽस्यब्रह्मचारिण:विन विस्तृतचिरार्जिनमितियावताननमय वश्यंत्रश्यति ब्रह्म चार्यात्त्यतोभवतीत्यर्थः ब्रह्मचारिणःशवनिर्हरणनिमित्तकर्मणोव्रतान्नितिरन्यत्रमातापित्रोशितवास For Private And Personal Use Only

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