Book Title: Trinshshloki
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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पिपरिचयरयधिरामाशोचअस्पृश्यन्न मेवाधिकम् सूनकंकर्णनधिकारिवलक्षणं निरासपिड़ी। महसमानमेवतिभावः। एनअपक्षयं त्रिरात्रंदशरात्रंबाशावमाशोचमिष्यते। उनहिवर्षे 'भयोः सूनक्रमातुरेवहात्सेतन्यारव्यानसमयेविज्ञानेश्नमाचार्ये स्पीकतम्॥अथस्त्रीपुवयोव जनयब्दत्वसंज्ञेजनिकर्जननीसोदराणांदशाहंयहास्यू श्यत्वमेचाधिकमिहविषयेस्तकंतुत्रिरात्रम्॥ // स्थाविशेषादाशोचविशेषमाविष्ठरोत्युत्तरान॥ ॥नामकरणादूर्ध्वक्षोरकालादर्वाक्यानक्षोर / | कालं मृतासुस्त्रीषुकन्यासुत्रिपुरुषविषयेयाचत्रिपुरुषंयोज्ञानिःसस्मानमात्रेणशङ्ख्येत अत्र / For Private And Personal Use Only

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