Book Title: Trinshshloki
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir | वानप्रस्यइनि कुलजेनवंश्यानप्रस्थन्तीयामिणियनोचचतुर्थाश्रमिाणपंढवेलीवेनोपरमनिरप रतेआप्रवःस्मानमात्रंशाकारणमिनियावन योषिट्रोनिप्रगुप्यनद्राणायमृतवनिदिनमहोरात्रमाशी चायुस्थविधेसाक्षायुरहतेनुसद्यमानमात्रेणझारितिपूर्वेणसंबंधवायुयातनकालांतरमृततु दिनमेवशधिहेतुः॥ ब्राह्मणार्थेविपन्नायेयोषितांगोगृहेपिया हवेचाहतानांवाएकरात्रमशोचक वानप्रस्थेयनोचोपरगतिकुलजेषंढकेचापूवम्पाद्योषिोविप्रगुस्यै मृतवतिनदिनयुद्धविरेनुसद्यः॥५॥ मिनिस्मृतः॥ उद्यतेराहवेशरपेक्षत्रधर्महतस्पच, सद्य संनिसनेयजस्तथाशीचमिनिस्तिनिरितिमनुवचनात् // एतत्ज्ञातव्यमेवाझदिनिमित्तमितिहनिर्णानमनोज्ञानानंतरसुत्सर्गनोदशाद्या For Private And Personal Use Only

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