Book Title: Trinshshloki
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir कथनंदेशकालादिभेदनोव्यवस्थापनीयम् एतस्यपाक्षिण्यमिधानस्यश्वकरयोग्रभागन्यांमातलान्यांचमातुले। पित्रोःस्वसरितहचपक्षिणीक्षपयन्निशामिनि तथा ॥मातुलेश्वशरेमियेगरोगुगनारूच॥ आशोचंपक्षिणीरात्रिमतामातामहीयदि॥ नथाच॥ पक्षिणामसापडेयोनि मातामत्यांचपित्रोःस्वसरिचविरतमातुलेमातुलान्यांचाथोसज्योति रेवस्वविषयनपतोग्रामनाथचनटे॥॥.. संबंधेसहाध्यायिनीचेत्यादिवचना निर्मूलं॥अथसज्योतिरेवेत्यस्य॥प्रेनेराजनिमज्योनिर्यस्यस्यादिषयेग्जितिरितिमनुवचनमूलंगया | 10 मेश्वरेकुलपत्तोश्रोत्रियेवातपस्विनिमशिष्येपंचत्वमापन्नेशहिर्नक्षत्रदर्शनारिति॥याज्ञवल्क्यच चनंमलंग॥ For Private And Personal Use Only

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