Book Title: Trinshshloki
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir शुन्नलिमारपशाईस्ततीदिनिवनगद अपरमातुर्दिोषमाह। मातुःपत्यारिपरि ति॥अपसागरिमृतायांपुत्रस्यदेशकालाविशेषेणमदमा सार्वत्रिरात्रंातदुत्तं पितपल्याग ऐसाशंगामजहिजोत्नमसंवत्सरेव्यतीतेतुत्रिरात्रमशचिर्भवेदिति अत्रशावशब्दयहणेना निकालेजननाशोचे शुदिनैवनिचिनातथाचोक्तम्॥नाशालिप्रसवाशोचेव्यतीपातपरि नेष्वपानिदेवलेन॥ एतदतिकांताशौसर्ववर्णसाशरणमित्याह ॥इदमनिक्रांत्यशोसमानमिति // इदं अतिक्रनिरशिकमः॥ तसंबंध्याशोदनसामानंसर्ववर्णसाधारयमित्यर्थः। पोषिते कालशेष स्यादशेषेत्र्यहमेवहि सर्वेषांवत्सरेपूर्णतेदत्वोदकंश चिरितिवचनात्॥पोषितेप्रेते सर्वेषांबाह्मणक्षत्रियादीनांअविशेषणकालविशेषःशमिहतुभशेषेपुननिक्रांतेदशाहादो सर्वेषांत्र्यहाशोनमेव संवत्सरेपूणेयदिपोषितप्रयणमवगतंग्यात्तदास ब्राहाणादिस्नात्वो For Private And Personal Use Only

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