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तेरापंथ-मत समीक्षा । www.mmmmmmmmmmmmmmmmmm समुदायसे बाहर किया । (किसी २ जगह १८१८ लिखा है) . भीखुननी जब समुदायसे बाहर हुए तब वे बखतावर, रूपचन्द भरमल, गिरधर वगैरह बारह और वह मिलकर, तेरह आदमी निकले थे। वस ! इसीसे 'तेरापंथ' ऐसा नाम पडा है । सुनते हैं रूपचन्द आदि दो साधु तो किसी कारणसे थोडे ही समयमें भिखुनजीको छोड कर, रुघनाथजीको मिल गये थे।"
बस । इस प्रकारसे 'तेरापंथ' की उत्पत्ति हुई है।
अब मिखुनजी ग्रामानुग्राम विचरने लगा। और खुल्लंखुल्ला दया-दानका निषेध करने लगा । बहुतसे पंडित लोग उससे शास्त्रार्थ करके उसको पराजय करते थे। परन्तु गाढ मिथ्यात्व के प्रभावसे वह कैसे मान सकता था?। उसके अभिनि. वेश-मिथ्यात्वरूप भूमिगृहमें पंडितों के विद्वानों की वचनरूप किरणें घुसने नहीं पाती थीं । जब भिखुनजी शास्त्रार्थमें किसीसे हार जाता था, तब वह कहता था:-'मेरी बुद्धिकी न्यूनतासे मैं पराजित होता हूं।परन्तु बात तो जो मैं कहता हूं वही सत्य है। बस ! ऐसी २ बातें करके अपने हठवादको नहीं छोडता था।
प्रियपाठक ! तेरापंथके मूल उत्पादक भिखुनजीके दादे परदादे लोग सूत्रों से 'मूर्ति' विषयक जो २ रकमेंथीं उनकी तो चोरी कर ही चुके थे। अब भिखुन नीने मूल दो और बातोंका फेरफार किया। यह तो सब कोई समझ सकते हैं किवही से एक दो रकमकी चोरी कोई करना चाहे तो उसको बहुत रकमोंका फेरफार करना पड़ता है। बस! इसी नियमानुमार दया और दान ये दो रकमें उड़ाने और किनकिन २ बातों में फेरफार करना पडा, तथा उसकी सिद्धिके लिये