Book Title: Terapanth Mat Samiksha
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Abhaychand Bhagwan Gandhi

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Page 79
________________ तेरापंथ-मत समीक्षा । पाठको ले करके यह सिद्ध करनेकी कोशिश करते हैं कि'सूर्याभदेवने जिन प्रतिमाकी पूजाके निमित्त जो 'हियाए' इत्यादि शब्द कहे हैं, वे संसारके लिये हैं । ' परन्तु यह ठीक नहीं है । भगवतीमूत्रके दूसरे शतकके दूसरे उद्देशेमें स्कंदक वापसने, महावीर स्वामीके पास एक दृष्टान्तको ले करके वातकी कि-' जैसे माथापतिने जलते हुए अग्निमे एक बहुमूल्य पात्र ( भांड ) निकाल., तब वह विचार करता है कि-यह मुझे हितकारी-सुखकारी-कल्याणकारी तथा आगामी भवमें काम लगेगा । उसी तरह हे प्रभो ! मेरी आत्मा एक भांड याने पात्र रूप है । तो जरा-मरणादि जलते हुए लोकसे निस्तारित हुई मेरी आत्मा, हितकारी-सुखकारी-कल्याणकारी तथा परभवमें मुझको लाभकारी होगी।' इत्यादि पाठसे गाथापतिके स्थानपर खुद हुआ। भांडके स्थानपर अपनी भास्माको स्थापित किया । तथा धनके स्थानपर ज्ञान-दर्शन-चारित्रको स्थापन किया । ऐसे उपमा उपमेयभाव करके उपनय उतारा है। वहाँ स्कंदकजीने आस्माको तारनेमें हियाए सुहाए' इत्यादि शब्द कहे हैं। उसी तरह गाथापतिके पाठमें भी हिआए सुहाए 'इ स्यादि शब्द कहे हैं। उन दोनों जगहों पर 'निःश्रेयम' का अर्थ मोक्ष है। परन्तु गाथापतिके पक्ष में 'निःश्रेयम' शब्दका अर्थ द्रव्यमोक्ष करना और स्कन्दुकजीके पक्षमें भावमोक्ष अर्थ करना। गाथापति उस भांडके देनेसे छूट गया तथा स्कंदकजी कर्मके देनेसे छूट गये। वैसे ही शब्द सूर्याभदेव भी हैं। इसके सिवाय जहाँ सूर्याभदेव, महावीर स्वामीको चंद्रणा करनेको गये, वहाँ भी

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