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तेरापंथ -मत समीक्षा |
शक्ति प्रभुक्तिका लाभ लेते हैं । जीवाभिगमे विजयदेवने प्रभुप्रतिमा के आये १०८ काव्य करके मधुकी स्तुति की है। देखिये, वह पाठ पृष्ठ १९१ वें में इस तरह है :
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“ जिसवराणं अहसन विसुद्ध गंथजुत्तेदिं महाचित्तेहिं प्रत्यजुत्तेहिं अपुणरुतेदिं संथुणइ संथुषइत्ता सत्तट्ठपयाई उसरइ उसरइत्ता धामं आणुं श्रंचेश, अचेता दाहिणजाएं धरणितलंसि निहाडेश
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उपर्युक्त पादमें, ' पहिले काव्य कह करके सात-आठ कदम जिनमतिमा से पीछे हठ करके, डाबा गोड़ा ऊंचा करके तथा जीणा धरणीतलमें स्थापन करके बहुमान के साथ शुक्रस्तव कह करके बंदणा करे,' इत्यादि कहा है ।
उसी तरह वर्तमानकालमें भी मुनिराज, मधुर-सुंदर - नये नये वृत्तवाले काव्य प्रभुके सामने कह करके चैत्यवंदन करते इस लिये याद रखना चाहिये कि साधुओं का अधिकार भक्ति कर का है । द्रव्यपूजा करनेका नहीं ।
इसके सिवाय और भी बहुत से ऐसे कार्य होते हैं कि-जो धर्म के होनेपर भी साधु करते नहीं हैं। क्योंकि वह उनका अधिकार नहीं है ।
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देखिये, साधु सूत्रानुसार दानधर्मका उपदेश देते हैं। किन्तु दान देते नहीं हैं। क्योंकि उस प्रकारके अशनादिकी सामग्री उनके पास नहीं होती । ढाई द्वीपमें जितने मुनिवर हैं, वे समस्त वंदनीय हैं । तथापि शिष्यों को तथा लघु गुरुभाईओं को एवं दूसरे छोटे साधुओंको वंदना करते नहीं है । क्योंकि