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तेरापंथ-मत समीक्षा । mmmmwwwwwwwwwwwwwwwwwww थे । आजकल छेवट्ठा संघयण होनेसे मलीन वस्त्रों में दुर्गधी हो जानी है तथा यूकाएं [जूएं] बहुत पडती हैं। आजकल तुम्हारे ( तेरापंथियोंके ) अनेकों साधु, कपड़ों से जूरं निकालते हुए दृष्टिगोचर होते हैं । उन जूओंको पैरोंमे बांध रखते हैं, जिससे विशेष दोषका कारण होता हैं । वे जूरं कई गृहस्थोंके घरमें पडती हैं, बहुतसी रास्तेमें गिरती है, तथा उपाश्रयमें तो गिरती ही रहती हैं । जू तीन इन्द्रियवाला जीव है, तो ऐसे तीनइन्द्रिय जीवोंकी इतनी विराधना न करके. फासुजल उपलब्ध हो, उससे यतना पूर्वक कपडे साफ किये जाय, तो कितना दोष या लाभ होता है ? इस बातका विचार करनेमें आवे, तो एकान्तवादको छोड करक, स्याद्वादकी सीधी सडक प्राप्त कर सकते हो। इतनाही प्रसंगसे कह करके अब मैं मूल बातपर आता हूँ। __कपडे रंगनेका कारण, जो यति शिथिल हुए थे, उनसे भेद दिखलानेका ही है । और वह भी शास्त्रयुक्त ही है । न कि मनःकल्पित । देखो, आप लोग (तेरापंथी) स्थानकवासियोंसे अलग हुए, तब स्थानकवासियोंसे विलक्षण मुहपत्ती बांधनी शुरुकी । और वह भी मनःकलित, नकि शास्त्र प्रमाणसे । तिसपर भी झूठेको झूठा समझते नहीं हो । और जिन्होंने सकारण, सशास्त्र आचायोंकी सम्मतिसे कपडे रंगनेका कार्य किया है, उसमें दोष देखते हो । यही तुम्हारा जाति स्वभाव दिखाई दे रहा है।
प्रश्न-२१ श्रीजिनेस्वर देवने दशमिकालकरा सातमा अध्येन गाथा ४७ मी मे कयोके साधु होकर असंयतीको आवजाव उभोर बेस मुकाम कर इत्यादिक छ बोल कणा नहीं