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तेरापंथ मत, समीक्षा
रोटी, चावल, खिचडी, शाक वगैरह अभक्ष्य समझने चाहिये। जिसमें जलका भाग रहा नहीं है, ऐसे पदार्थ, दिखलाए हुए कालानुसार भगवान्ने भक्ष्य कहे हैं। और इसी तरह हम लोक निंदनीय सजीव वासी चीजें लेते भी नहीं हैं । आप लोक भी वैसा ही करेंगे तो भगवान्की आज्ञाके आराधक होकर आत्मश्रेय करने के लिये भाग्यशाली होंगे।
प्रश्न-२० पेला छला जीनेस्वर देवारा सादारे सर्व सपेदवपरा कपडा आया है और आप पीला कपडा पेनते हों और रंगते हो सो कीस शास्त्रकी रुहसे ।
उत्तर-पहिले तथा अन्तिम तीर्थंकर महाराजका कल्प अचेलक है । जीर्ण-तुच्छ वस्त्रके. परिधान होनेसे अचेलक माना है । तिसपर भी तुम्हारे [ तेरापंथी] साधु नये स्वच्छ तथा रेशपीकपडे पहनते हुए देखनेमें आते हैं, और उनको अचेलक कहते हो, इसका क्या कारण ? कारण विशेषमें कपडेको रंग देनेकी आज्ञा हमारे माने हुए सूत्रोंमे मौजूद है। इससे हम लोग रंगा हुआ कपडा रखते हैं, उसमें न दोष है, न आज्ञाका भंग है । 'न धोना न रंगना' यह जो कहा है, वह सफाई या शौकके आशयसे कहा है। विशेष लाभके लिये तो खास मात्रा दी हुई है।
प्रसंगानुरोध यह भी कह देना समुचित समझा जाता है कि-पक्षपातको छोड करके व्यवहारिक रीतिसे देखा जाय तो यतना पूर्वक परिमित जलसे वस्त्रपक्षालनमें फायदा ही है । पूर्व ऋषि-मुनिराजोंका संघयण तथा पुण्य प्रकृति और ही प्रकारकी थी, जिसके कारण टुंगधी तथा यूकादि. नहीं पाहते
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