Book Title: Terapanth Mat Samiksha
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Abhaychand Bhagwan Gandhi

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Page 73
________________ तेरापंथ-मत समीक्षा । करे है जीणसू सूर्याव देवता बी पूनी परंपरा रीते, ओर आप फुरमाते होके निसेसाए सबदनो अर्थ मोक्ष है सो इणरो उत्तर ओहेके इणीज मुताबीक पाठ भगवती सूत्रमें सतक दूजें उदेशे पेले लायपांयम धन बारे काडीयो, जठे 'नीसेसाए अणुगामीयताए भविसई' पाठ आयो छै, सो ईण जगा कोई मोक्ष हुवो दोनु जगा नीसेसाए अणुगामीयताए भविसई, एक सीरीका पाठ छै, इण न्याय प्रतमा पूजी जीणमे परभोरो मेक्ष नथी. ___उत्तर- 'देवताके कहनेसे पूजा की उसमें लाभ नहीं है " ऐसे तुम्हारे कहनेसे, यह मालूम होता कि-आप लोगोंका यह मानना है कि-दूसरेके कहने से, कोई मनुष्य कुछ कार्य करे उसको लाभ या नुकसान कुछ नहीं होता' । परन्तु यदि ऐसा मानोगे तो दूसरेके कहने से कोई संसार छोडे, दान दे, भक्ति करे, विनय करे उसको लाभ नहीं होना चाहिये । दूसरेके कहनेसे हिंसादि कार्य करे, तो उसको नुकसान नहीं होना चाहिये । परन्तु नहीं, यह बात आप लोग भी स्वीकार नहीं कर सकते । तो भला फिर, यह विचारनेकी बात है कि देवताके कहनेसे पूजाकी है, तो कोई खराव कार्य तो नहीं किया है । उत्पन होने के बाद सूर्याभदेवने स्वयं यह विचार किया कि-हमें पूर्व-पश्चात् -कल्याणकारी-हितकारी-सुखकारी-भवान्तरमें भी उपकारी-मुक्त्यर्थ क्या कार्य है ? उस समयमें देवताओंने आ करके कहा है । देखिये, इस विषयका पाठः : "तेणं कालेणं तेवं समएणं सूरियानेदेवे अदुगोववण्णमेत्ते चेव समाणे पंचविहाए पजत्तिए पन्जतिभावं गच्छ, तं जहाः-आहारपज्जत्तीए,

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